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Janseva Antrashtiya Manavdhikar Sangathan

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Janseva Antrashtiya Manavdhikar Sangathan

"I strongly believe that the youth of our country enable us to hope for a prosperous future. The aware citizens form the building block of a progressive nation. It is quintessential for every individual to be informed of their fundamental rights alongwith the knowledge of our constitution. It is therefore our promise and commitment to serve the people of the nation to the best of their interest."

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दान करना एकजुटता का अंतिम संकेत है।

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जनसेवा अंतरास्ट्रीय मानवाधिकार  संघ आमंत्रित करता है।

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जन जन मे एकता एवं अमन शान्ती का सन्देश दे

About us

जनसेवा अंतराष्टीय मानवधिकार संगठन

" हमें ऊँचे नहीं उठना , हमें नीचे नहीं गिरना। सभी के साथ मिलकर हम, यहाँ कुछ कर गुजर जायें।
बहुत पाने की चाहत में , बहुत कुछ खो दिया हमने, उड़ाने व्यर्थ हैं वो , जो जमीं को ठेस पहुचायें। "

भारतीय प्राचीन सभ्यता के प्राम्भिक काल में मानवाधिकारों को अत्यन्त महत्व दिया गया है । प्राचीन ग्रन्थों में दोषी का परामर्श लेने का अधिकार और दोषी को निर्दोष मानना अच्छी तरह मान्य होना पाया गया है इसलिए प्राचीन हिन्दू विधिक पध्दति और विश्व व्यापक परिवार "वसुधैव कुटुम्बकम " की विसरत्त धारणा व्यक्तियों के मानवाधिकारों के बारे में मान्यता मिली । सारे विश्व की बन्धुता को संस्कृत के निम्नलिखित श्लोक में उपयुक्त ढंग से मूर्त रूप दिया गया है- " न त्व्ह कामये राज्य न स्वर्ग न पुनर्भवम कामये दुःख तप्ताना,प्राणिनाड आतनाशम'' मै न तो राज्य न ही स्वर्ग के आनन्द न ही निजी मोक्ष की खोज में हूँ बल्कि मानवता को इसके विविध दुःखो से मुकित दिलाना ही मानव जा का मुख्य उददेश्य मानता हूँ । भारत की स्वतत्रता के 75 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी आज भारतीय नागरिको की मानवाधिकारों के विषय में वास्तविक स्थिति क्या है यह जानना आवश्यक है। 7 दशकों के पश्चात् भारत देश ने अपने देशवासियो को कितनी सीमा तक मानवाधिकार प्रदान करने में सफलता प्राप्त की है

 इसका मूल्यांकन करना बहुत महत्वपूर्ण है चूकि हमारे संघ का लक्ष्य है कि-भारत माता के सपूतो को भारत माता का प्यार मिले वंचित ,शोषित, पीड़ित है जो मानवाधिकार मिले १० दिसम्बर १९४८ को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की ऐतिहासिक सार्वभौमिक घोषणा की गई जिसे सामान्यतः मानवता का महाधिकार पत्र''माना जाता है । भारत के संविधान निर्माताओं ने इस अंतर्राष्ट्रीय सार्वभौम घोषणा का सुन्दर निरूपण भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इन शब्दों के किया है कि हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पंन समाजवादी पंथनिपक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके नागरिको को सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार अभिव्यकित विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने लिए तथा उन सब में व्यकित की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखड़ता सुनिशिचत करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान में आज तारीख २६ नवम्बर १९४९ ई० को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते है । संविधान की प्रस्तावना को देखकर यह विश्वास अटल ही जाता है की भारत के संविधान में मानवाधिकारों के प्रति एकवचन बध्दता है लेकिन भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी वार्षिक रिर्पोट में यह प्रश्न उठाए है कि स्वाधीनता के 75 वर्ष बीत जाने के बाद क्या हमने स्वदेशवासियो मानवाधिकारों के सम्बन्ध में दिए वचन का पालन किया है ।

भारत के संविधान में दी गई गारंटी एवं विधान में निहित वादोंके अनुसार क्या हमने भारतवासियो जीवन स्वतंत्रता समानता तथा वैयकितक गरिमा के अधिकार विषय के लिए दिए गए वचन का यदि समग्र रूप में नहीं तो क्या काफी हद तक पालन किया है लेकिन यह अत्यधिक खेद का विषय है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के छःदशक बीत जाने के बाद भी भारत की सामान्य जनता अपने मानवाधिकारों की जानकारी नहीं प्राप्त कर सकी है। आम व्यक्ति की ही बात क्या यहाँ पढ़े लिखे शिक्षित व्यकित भी मानवाधिकारों के विषय में जानकारी नहीं रखते है जबकि सभी भारतीय नागरिको के लिए यह गर्व की बात है कि भारत के प्राचीन धर्मग्रन्थो और धार्मिक पुस्तकों में मानवाधिकारों के विचारो को सर्वाच्चा महत्व दिया गया है । ऋग्वेद में नागरिक की तीन स्वतंत्रताओं ,शरीर रहने के लिए घर तथा जीवन का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है तथा सारी मानवता से दूसरो की नागरिक स्वतंत्रता को बनाए रखने की अपील की गयी है। महाभारत के शान्ति पर्व में भीष्म पितामह राजा के कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है कि सर्वोत्तम राजा वह है जो प्रजा के विचारो और खुशी की रक्षा करे । श्री रामचरित मानस में गोस्वामी जी लिखते है कि " मुखियामुखु सो चाहिए खान पान कहूँ एक ,पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित विदेक "अथर्ववेद में यह उच्चारित किया गया है कि मैं तुम्हे दिल में बसाऊंगा और भाव से मुक्त करुगा, भाई को भाई से बहन को बहन से आपस में घृणा नहीं करनी चाहिए किसी उददेश्य की प्राप्त सभी को मिलकर करनी चाहिए यह मै आपको मित्र भाव से बताता हूँ आपका भोजन और आनन्द समान होना चाहिए मै आप सभी को एक आस स्वीकार्य बन्धन में बाँधता हूँ भारत श्रुति सभी प्राणियों को मजबूती से एकत्व का पाठ पढ़ती है ईशोपनिषद में मानवाधिकारों का दूसरा मुलभुत सिद्वान्त लड़ाकुओं और गैर लड़ाकुओं के बीच सुनिश्चित अन्तर अपष्ट करता है जिसे प्राचीन मनुस्मृति में गम्भीरता से व्यक्त किया गया है मनु के मानव धर्म शास्त्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो बिना हथियार के है या सो रहा या नंगा है बिना तैयारी के है या देखने वाला है ऐसे गैर लड़ाकू को मारने की मनाही व्यक्त की गई है मार्कण्डेय पुराण में यह किया गया है कि मै सभी प्राणियों के लिये शुभकामना व्यक्त करता हूँ कि सभी भय से मुक्य हो सभी भाईचारे ममता स्नेह आनन्द से परिपूर्ण हो वे अपने हो या गैर हो जो मुझे अब रनेह करता है। वह मानवता जीवन में धन्यता का सहभागी हो और वह जो मुझसे यहाँ घृणा का चुनाव करता है वह भी भलाई का मार्ग प्राप्त करे। गौतम बुध्द के अहिंसा के धर्म सिध्दांत में कर्म और मानवता का सिध्दांत ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी पहले भी इसके समकक्ष मान्य था प्राचीन धर्मग्रन्थो की इसी अवधारणा को पुष्ट करते हुए मानवधिकार संरक्षण अधिनियम (प्रोटेक्शन ओफ ह्यूमन राइट एक्ट) १९९३. (१९९४ कि संख्या १०) की धारा २ (घ) में मानवाधिकारों को निन्म प्रकार से परिभाषित किया गया है मानवाधिकार पर सेअभिप्राय द्वारा प्रत्याभूत तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओ से अभिप्राय मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३, १९९४ का अधिनियम संख्या १० कि धारा २ के अनुसार नागरिक एवं राजनितिक अधिकारियो पर अन्तर्राष्ट्रीय प्रंसविदा से है भारत के संविधान जो मूल अधिकार गारंटी किये गए है उनका पूरा विवरण संविधान के भाग ३ में किये गए है । भारत के संविधान में कुछ राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के भाग ४ में अनुच्छेद ३६ से ५१ तक दिया गया है भारत के मानवधिकार भारत के वे मूल अधिकार है जिन्हे कार्यांन्वित करने कि गारंटी अनुच्छेद १९.२०.२२.२५.२६.२७.२८ तथा २९ में उल्लेखित है समानता का अधिकार संविधान के अनिच्छेद १४.१५.१६.१७ तथा १८ में उल्लेखित है व्यक्ति के प्रतिष्ठा सम्बन्धी अधिकार संविधान के अनुच्छेद १७.२३.२४ में उल्लेखित है संविधान में मूल अधिकारों कि गारंटी प्रदान करने के उद्देश्य से संविधान में संविधानिक उपचारो का अधिकार अनुच्छेद ३२ तथा ३५ द्वारा प्रतिपादित किया गया है भारतीय संस्कृति में अधिकारों से ज्यादा कर्तव्यों पर सदैव बल दिया गया है तथा इसी कारन जब हम मौलिक और मानवाधिकारों कि बात करते है तो संविधान में दिए गए मूल कर्तव्यों पर भी जरूर ध्यान दिया जाना आवश्यक है|

 जनसेवाअंतराष्टीय मानवधिकार संगठन का उद्देश्य है कि प्रत्येक नागरिक मानवाधिकारियों को गहराई से जान सके तथा मन कर्म एवं वचन से अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मानवाधिकारों कि रक्षा करे तथा मानवीय सर्वोच्च न्यायलय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा पुलिस रेगुलेशन एक्ट के द्वारा दिए गए निर्देशों 'मानवाधिकार संरक्षण को सम्पूर्ण भारत में लागू करवाकर प्रत्येक नागरिक को मानव अधिकार की सुरक्षा प्रदान करे। जनसेवा अंतराष्टीय मानवधिकार संगठन में उन समस्त व्यक्तियों का स्वागत है जो मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील है तथा यह आंदोलन उन लोगो के लिए खुला है

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जनसेवा अंतराष्टीय मानवधिकार संगठन

आपके घर के आस - पास कोई संधिग्ध परिवार या व्यक्ति जिसके क्रिया कलापो से हम परिचित नहीं हैं और आशंका है कि वह हमारे समाज को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाने की योजना में लिप्त है या उसके क्रिया कलापों से समाज दूषित हो रहा है । अतः पुलिस की ही नहीं अपितु हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि संदिग्ध व्यक्ति के बारे में संबंधित थाने को सूचित करे । यह अपराध नियंत्रण का छोटा सा पहला प्रयास बड़े संभावित अपराधों पर नियंत्रण करने में सफल हो सकता है | चूँकि " मानवाधिकार सुरक्षा हम सबका दायित्व है।"

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जनसेवा अंतराष्टीय मानवधिकार संगठन  के मुख्य उद्देश्य

News
  • संयुक्त राष्ट्र,भारतीय संविधान, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून के मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणा पत्र का अनुसरण करना, अपनाना और बढ़ावा देना ।

  • राज्य मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के उद्देश्य का पालन करना व संविधान में प्रदत्त मौलिक एवं मानव अधिकारों के लिए सभी को जागरुक करना, अधिकार दिलाने व सुरक्षित करने के उद्देश्य से संघर्ष करना ।

  • सरकारी व गैर सरकारी विभागों में व्याप्त रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार को रोकना ।

  • भ्रष्ट और रिश्वतखोर अधिकारियों पर कानूनी कार्यवाही कराना व सजा दिलवाना ।

  • सरकारी अस्पतालों में सरकार द्वारा गरीबों के इलाज के लिए दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ गरीबों को दिलाना ।

  • सरकारी डॉक्टरों के द्वारा अस्पताल में आए हुए मरीजों से पैसा वसूलने, सरकारी दवा ना देने, बाहर से दवा लिखने या मरीज के साथ दुर्व्यवहार करने पर कानूनी कार्यवाही करवाना ।

  • जुर्म अन्याय व भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए संघर्ष करना और शासन प्रशासन का सहयोग करना ।

  • बाल विवाह व महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न पर अंकुश लगाना ।

  • महिलाओं को सशक्तीकरण करने के उद्देश्य से योजनाएं संचालित करना व महिलाओं को जागरुक करना ।

  • महिलाओं के साथ हो रहे शारीरिक व मानसिक शोषण को रोकना व दहेज प्रथा को बंद करना ।

  • बाल मजदूरी पर अंकुश लगाना व गरीब और अनाथ बच्चों की रहने खाने और शिक्षा की व्यवस्था करना ।

  • गरीब व अनाथ बच्चों के लिए हॉस्टल व अनाथालय का निर्माण कराना ।

  • पीड़ित असहाय व्यक्तियों को हर संभव मदद करना और पीड़ितों की समस्याओं के निस्तारण हेतु शासन प्रशासन व जिम्मेदार अधिकारियों से मदद कराना ।

  • प्रदूषण को रोकने का प्रयास करना व वातावरण को शुद्ध बनाए रखने के उद्देश्य से वृक्षारोपण कराना और कार्यक्रम आयोजित कर समाज को जागरुक करना ।

  • यातायात के नियमों का पालन एवं करना कराना व कैंपों का आयोजन कर लोगों को सड़क सुरक्षा व यातायात के नियमों के बारे में जागरुक करना ।

  • समाज में असहाय व पीड़ित लोगों को कानूनी मदद एवं न्याय दिलाना ।

  • किसी भी अपराध को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन का पूर्ण सहयोग करना , सूचना देना व अपराधों की रोकथाम के लिए आपसी तालमेल बनाए रखना ।

  • खाद्य और पेय पदार्थों के मिलावटखोरों पर कानूनी कार्यवाही करवाना ।

  • एड्स कैंसर व अन्य घातक जानलेवा बीमारियों के बारे में लोगों को जागरुक करना ।